Ye shahar
बहुत दिनों के बाद आज कुछ याद आया है , कि इस शहर में हम भी मेहमान होते थे । ये शहर जो बन गई है अब जिंदगी मेरी यूँ ही कभी ऐसा भी था कि हम इसे जानते न थे । वक़्त ने ऐसा लिखा है हर दिन इस शहर में लगता है, सजा-ए -मौत भी इससे बत्तर नहीं होती ।